अमेरिका के हिंदू मंदिर में अनुसूचित जाति के मजदूरों के शोषण का क्या है मामला
अमेरिका में कई भव्य मंदिरों का निर्माण करने वाली संस्था बोचासंवासी अक्षर पुरुषोत्तम स्वामीनारायण संस्था या बैप्स के ख़िलाफ़ न्यूजर्सी के मंदिर में काम करने वाले मज़दूरों ने मुक़दमा किया है.
उनका आरोप है कि उनसे बंधुआ मज़दूरों की तरह काम कराया गया और उनको सही मेहनताना भी नहीं दिया गया.
मई की 11 तारीख को जिस दिन मुक़दमा किया गया उसी दिन अमेरिकी जांच संस्था एफ़बीआई ने रॉबिन्सवील इलाके में 159 एकड़ भूखंड पर स्थित बैप्स मंदिर पर छापा भी मारा.
छापे में अमेरिका के होमलैंड सिक्योरिटी और श्रम विभाग के एजेंट भी शामिल थे. खबरों के अनुसार, एफ़बीआई छापे के बाद करीब 90 कामगारों को मंदिर परिसर से बसों में बिठाकर ले गई. अब वे मज़दूर पुलिस के संरक्षण में हैं.
मज़दूरों के पासपोर्ट ले लिए गए थे
मज़दूरों की तरफ़ से दायर मुकदमे के दस्तावेज़ों में कहा गया है कि स्वामी नारायण संस्था या बैप्स के अधिकारियों ने मज़दूरों को भारत से अमेरिका लाने के लिए वीज़ा अधिकारियों से भी सच छिपाया और मज़दूरों को वॉलंटियर्स की तरह पेश किया.
जब वे अमेरिका पहुंचे तो उन मज़दूरों के पासपोर्ट भी उनसे ले लिए गए थे.
मज़दूरों का कहना है कि उनको ठीक से खाना भी नहीं दिया जाता था, और सिर्फ़ दाल और आलू खाने को दिया जाता था. उनको ट्रेलर में रहने की जगह दी गई थी जहां बकौल मज़दूरों के उनको कई मुश्किलों का सामना करना होता था.
और उनको मंदिर परिसर से बाहर जाने या किसी बाहरी व्यक्ति से बात करने की भी अनुमति नहीं थी. मज़दूरों को डराया धमकाया जाता था कि उनको गिरफ़्तार करवा कर भारत भेज दिया जाएगा.
अदालती दस्तावेज़ों में दावा किया गया है कि सन 2018 से सन 2020 के दौरान मज़दूरों से रोज़ाना 12 घंटे से अधिक काम करवाया जाता था जिसमें पत्थर तोड़ना, भारी मशीनें चलाना, सड़क बनाना, सीवर लाईन बनाना आदि शामिल था.
बीमारी के बाद एक मज़दूर की मौत
मज़दूरों का कहना है कि इतनी कड़ी मेहनत के बाद उन्हे महीने में सिर्फ़ 450 डॉलर या 35 हज़ार रुपये दिए जाते थे. इस तरह उन्हें क़रीब एक डॉलर प्रति घंटा की दर से मेहनताना दिया जाता था जो न्यूजर्सी के सरकारी क़ानून के मुताबिक़ कम से कम 12 डॉलर प्रति घंटा होना चाहिए.
अदालती दस्तावेज़ों में मज़दूरों ने आरोप लगाया है कि उन्हें अच्छी नौकरी का लालच देकर भारत से अमेरिका लाया गया था, मगर अमेरिका में उनको बंधुआ मज़दूर की तरह रखा गया. इन हालात में कम से कम एक मज़दूर की बीमारी के बाद मौत भी हो गई थी.
मज़दूरों के अनुसार इस घटना के बाद मुकेश कुमार नामक एक मज़दूर ने मदद के लिए एक वकील से संपर्क किया और अदालत जाने का फ़ैसला किया. 37 वर्षीय मुकेश कुमार अब भारत लौट गए हैं.
इन मज़दूरों की मदद करने वाली न्यूजर्सी की भारतीय मूल की एक वकील स्वाति सावंत ने न्यूयॉर्क टाइम्स से कहा कि मज़दूरों के साथ बुरा बर्ताव किया जा रहा था.
स्वाति सावंत ने कहा, "मज़दूर समझते थे कि अमेरिका में उन्हें अच्छी नौकरी मिलेगी और घूम-फिर सकेंगे. लेकिन उनको ये नहीं मालूम था कि उनके साथ जानवरों जैसा बर्ताव किया जाएगा और उनको मशीन समझा जाएगा कि जिनको कभी छुट्टी की ज़रूरत नहीं होगी."
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