उत्तराखंड: गांवों में बढ़ता कोरोना संक्रमण, इलाज की कमी से जूझते लोग
उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में पिछले तकरीबन दो हफ़्तों से लगातार बारिश और बर्फ़बारी हो रही है. साथ ही इन इलाक़ों में कोविड संक्रमण की वजह से कई लोग बुख़ार और अन्य दिक्कतों की शिकायत कर रहे हैं.
चमोली जिले के सीमांत इलाक़े निजमुला घाटी में बसे गांव ईराणी के ग्राम प्रधान मोहन नेगी कहते हैं कि पिछले कुछ दिनों से उनके गांव के करीब 80 प्रतिशत लोगों को बुखार है, कई लोगों को बुखार के साथ-साथ खाँसी-जुखाम की भी शिकायत है.
इस वक्त गांव में ऐसे हालात हैं कि पेरासिटामोल तक मिलनी मुश्किल है. उनके पास कुछ एक टेबलेट्स थीं लेकिन अब कोई दवा नहीं है.
अचानक लोगों को ये कैसा बुखार आया है इसका पता बिना टेस्टिंग के नहीं लगाया जा सकता है और टेस्टिंग की यहाँ कोई भी सुविधा मौजूद नहीं थी.
कंटेनमेंट ज़ोन बने गांव
जिन जगहों पर टेस्टिंग के बाद कोरोना के मरीज़ मिल रहे हैं, उन्हें कंटेनमेंट ज़ोन बनाया जा रहा है. टिहरी गढ़वाल के छाती गांव में पांच मई को कोरोना टेस्ट हुए थे.
अब तक इस गांव के 42 लोग संक्रमित पाए गए हैं, जिनमें गांव के केदार सिंह और उनका परिवार भी शामिल है.
अब प्रशासन ने इस गांव को कंटेनमेंट ज़ोन घोषित कर दिया है. पर केदार सिंह सरकारी सहायता से नाख़ुश हैं.
उन्होंने बीबीसी को बताया, "दवाइयों की जो किट दी गई है उसमें जो-जो चीजें लिखी गई हैं वह पूरी नहीं मिलीं हैं. किट में ऑक्सीमीटर और थर्मामीटर का भी जिक्र किया गया है लेकिन यहां ऑक्सीमीटर और थर्मामीटर दोनों गायब है, पूरे गांव के लिए सिर्फ पांच ऑक्सीमीटर और पांच थर्मामीटर दिए गए हैं."

गांवों का हाल
उत्तराखंड में इन दिनों सोशल मीडिया पर कई तस्वीरें वायरल हो रही हैं जिसमें दिखाया जा रहा है कि गांव में लोग अपने खेतों में दाह-संस्कार कर रहे हैं.
गांवों में मरने वालों का अभी कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं आया है और न ही यह पुष्टि की गई है कि मौत कोरोना संक्रमण की वजह से हुई है.
रुद्रप्रयाग ज़िले के त्यूरी गांव के रहने वाले हरेंद्र सिंह सेमवाल बीबीसी से बातचीत में बताते हैं उनकी दादी को कुछ दिनों पहले बुखार आया था. जब तबीयत ज्यादा खराब हुई तो वो उन्हें गुप्तकाशी स्थित एक अस्पताल में ले गए. वहां पता चला कि उनका ऑक्सीज़न लेवल काफी कम है.
हरेंद्र बताते हैं, "दादी का ऑक्सीजन लेवल 64 पहुंच गया था. अस्पताल में इलाज की सुविधाएं पर्याप्त नहीं थीं. उन्होंने रुद्रप्रयाग के लिए रेफर किया. रुद्रप्रयाग तक ले जाने के लिए ट्रांसपोर्ट की कोई सुविधा नहीं थी. हम दादी को नहीं बचा पाए."
बिना टेस्ट के हुई हरेंद्र की दादी की मौत को कोरोना से हुई मौत नहीं कहा जा सकता लेकिन उनके लक्षण वही थे जो कोरोना मरीज़ों के होते हैं.
फ़ोन पर बात करते हुए हरेंद्र कहते हैं कि उनके गांव में लगभग सभी परिवारों में किसी न किसी को बुख़ार है.
रुद्रप्रयाग जिले के ऊखीमठ विकासखंड के रहने वाले सुभाष रावत, गांव प्रधानों के एक संगठन के अध्यक्ष हैं. वे बताते हैं उनके अंतर्गत करीब 68 गांव आते हैं और इन सभी गांव में कई लोगों को बुख़ार है.
सुभाष आरोप लगाते हैं कि आशा कर्मचारियों को गांव में भेजा जा रहा है लेकिन उन्हें भी पर्याप्त संसाधन मुहैया नहीं कराए जा रहे हैं. वे कहते हैं कि कई बार तो खुद आशा वर्कर्स भी कोरोना पॉजिटिव पाई गई हैं.
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